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2 Oct 2019 Sthapna Divas Samaroh
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2 अक्टूबर 2019 को आनन्दमय जीवन धारा के प्रेमपूर्ण आनंदमय सफर के गरिमामय 10 वर्ष पूर्ण होने एवं सद्गुरु परम आनन्द मैत्रेय के जन्मदिवस के पावन अवसर पर यज्ञ चिकित्सा ध्यान का आयोजन नरेला ध्यान विज्ञान केंद्र में किया गया। इस अवसर पर देश के विभिन्न हिस्सों से साधकों ने नरेला ध्यान केंद्र पर पहुंचकर स्वामी जी को बधाइयाँ प्रेषित की।
कार्यक्रम का शुभारम्भ सोमप्रकाश एंड पार्टी द्वारा भजनों से किया गया| इस कार्यक्रम का मंच संचालन युगल दंपत्ति श्री हरेन्द्र जी व श्रीमती गुंजन जी द्वारा रहा|
कार्यक्रम के दौरान साधकों ने बीते दस वर्षों में आनन्दमय जीवन धारा से जुड़कर स्वामी जी के सानिध्य में विभिन्न ध्यान विधियों से गुजरने के उपरान्त जीवन में जो बदलाव आए हैं और जो अनुभव हुए हैं उन अनुभवों को सबके साथ साझा किया।

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श्रीमती रीटा अग्रवाल ने कहा कि विवाह उपरान्त बहुत से सन्तों से मिलना हुआ परन्तु स्वामी जी से मिलने के बाद सब कुछ बहुत आसान हो गया, उनके द्वारा बताई ध्यान विधियों से ध्यान बहुत अच्छी प्रकार से लगने लगा तथा जब भी मैं ध्यान केंद्र में आकर स्वामी जी के दर्शन करती हूँ तो मैं महीनों तक ऊर्जा से भरी रहती हूं तथा मन मे बहुत सन्तुष्टि प्राप्त होती है।
श्री गिरधारी लाल जिंदल ने अपनी गुरु भक्ति को मीरा की भक्ति से जोड़ते हुए सद्गुरु से निवेदन किया कि हमें सदैव प्रेम का, मोहब्बत का पाठ पढ़ाते रहें व अपनी चटरचस्य में सदैव स्थान देते रहें।
श्रीमती जिंदल ने स्वामी जी के जन्मदिन की बधाइयाँ प्रेषित की।
मैत्रेय कृष्ण आनन्द ने आनन्दमय जीवन धारा में पिछले दस वर्षों के अनुभवों को नदी के समुद्र में मिलने के रूप में प्रस्तुत करते हुए कहा कि नदी के समुद्र में मिलने के दौरान काफी उतार चढ़ाव का सामना करना पड़ता है परंतु जब नदी समुद्र में मिलती है तो वह नदी नहीं समुद्र ही बन जाती है और विराट में परिवर्तित हो जाती है। इसी प्रकार स्वामी जी द्वारा करवाई गई ध्यान विधियों से मेरे जीवन मे आमूलचूल परिवर्तन हुआ तथा अब मैं पूर्णतः आनन्दित हूँ।
श्री राजेन्द्र सैनी ने कहा कि स्वामी जी ने मुझे पशुता से श्रेष्ठ मानव की ओर का रास्ता दिखाया। मैं बहुत जगह घूमा लेकिन सत्य कहीं प्राप्त नहीं हुआ लेकिन स्वामी जी के सानिध्य में आकर उन्हें अपने अस्तित्व का सत्य ज्ञान हुआ।
श्री जयपाल ने बताया कि मैं बहुत सारे तीर्थो पर घूमा सोचा परमात्मा मिलेंगे लेकिन कहीं कुछ नही मिला, लेकिन सद्गुरु के सम्पर्क में आने के बाद मेरी अंतरात्मा जानती है कि मुझे क्या मिला, जो कहीं भी प्राप्त नहीं हो पाया वो यहां प्राप्त हो गया। सद्गुरु मैत्रेय जी ने मेरे भीतर बैठे परमात्मा के दर्शन करवा दिए।
डॉ. विजय आनन्द ने कविता के माध्यम से सद्गुरु के जन्मदिवस की बधाई देते हुए कहा कि मुझे यहां करोड़ों का रत्न मिला है क्योंकि जब हम प्रार्थना करते हैं तब परमात्मा को अपनी सुनाते हैं लेकिन जब हम ध्यान में होते हैं तो हम परमात्मा की सुनते हैं, यही अनमोल रत्न मुझे मिला है।
इसके उपरान्त श्री प्रदीप आर्य ने आनन्दमय जीवन धारा एवं स्वामी जी के साथ दस वर्षों के अनुभवों को एक यात्रा कहा।
उन्होंने बताया कि 2 अक्टूबर 2009 को स्वामी जी के जन्मदिन के अवसर पर आनन्दमय जीवन धारा अस्तित्व में आई और एक विचार गोष्ठी के कार्यक्रम के रूप में शुरुआत हुई जिसमें बहुत सी संस्थाओ के विद्वानों को उपस्थिति रही।
लेकिन इन दस वर्षों की यात्रा साधकों के लिए तो निश्चित ही सुखद रही होगी परन्तु स्वामी जी ने स्वयं दुख तकलीफ उठाकर साधकों के उद्धार के लिए और उनके जीवन मे प्रेम व आनन्द भरने के लिए सब कुछ न्यौछावर कर दिया। आनन्दमय जीवन धारा की यह यात्रा एक साधक से हजारों साधकों तक होते हुए यहां तक पहुंची है। उन्होंने कहा कि इस यात्रा के दौरान स्वामी जी ने अपने लिए कुछ भी नही संजोया, सब कुछ प्रेम व मैत्री के रूप में बांट दिया। मैंने इन दस वर्षों में स्वामी जी के संसर्ग में धूप, छाँव, दिन, रात, आंधी तूफान देखे लेकिन निपट शांति भी देखी और चारों तरफ व्यक्तियों में भारी बदलाव भी देखे परन्तु स्वामी जी में इन दस वर्षों में लेशमात्र भी बदलाव नही हुआ। वे पहले भी प्रेम और मैत्री की प्रतिमूर्ति थे तथा आज भी वैसे ही हैं। उन्होंने अपने भीतर भरे प्रेम, आनन्द, करुणा व ममता को सभी साधकों पर उड़ेल दिया और उनके जीवन को सकारात्मक रूप में आनंदित कर दिया। पिछले दस वर्षों में स्वामी जी ने मानव के शरीर व मन की शुद्धि के लिए और अहंकार को तिरोहित करने में सहायक 100 से ज्यादा ध्यान की विधियों को विकसित किया है। जिन विधियों द्वारा आज आनन्दमय जीवन धारा से जुड़े प्रत्येक साधक का जीवन सुखमय, प्रेमपूर्ण व आनन्दित हो रहा है।
उन्होंने स्वामी जी के संघर्ष को इन शब्दों में बांधने का प्रयास किया।
"आँधियाँ भी आईं थी, तूफान भी आए थे,
मगर ना जरा भी तुम्हारे कदम लड़खड़ाए थे,
मिल रही हैं जो बधाई आज इतनी तादाद में,
ये उसी का सिला है जो तुम वक्त से टकराए थे"
"जब सवेरा हुआ है तो अंधेरी रात भी रही होगी,
जब सन्नाटा पसरा है तो हवा तेज भी बही होगी,
बधाइयों का कारवां यूँ ही नही चल पड़ा तेरी ओर,
वक्त की ज्यादतियां तुमने भी सही होंगी"
उन्होंने स्वामी जी के प्रति अपने आभार को कुछ इस तरह प्रदर्षित किया।
"इस बस्ती से अलग, जमाने से जुदा कह दें,
अजब कहें, अजीम कहें, अलहदा कह दें,
आपकी रहनुमाई के किस्से इतने मकबूल हैं, हमारी पेश चले तो, हम आपको खुदा कहदें"
उन्होंने स्वामी जी व साधकों का सम्बंध कुछ इस तरह प्रस्तुत किया :
"चाहे जितने काँटे हों, फूलों का बिछौना हो जाता है,
मुश्किलों का पहाड़ भी आए, तो बौना हो जाता है,
आप तो पारस पत्थर हैं स्वामी जी,
जिसको भी छू लेते हैं वो लौहा-लौहा नही रह जाता, सोना हो जाता है"
अंत में उन्होंने स्वामी जी का एवं समस्त उपस्थिति का आभार व्यक्त किया।
श्री भूपेंद्र राणा ने अपने सम्बोधन में स्वामी जी व आश्रम के दस वर्ष पूर्ण होने की बधाइयाँ प्रेषित करते हुए कहा कि मेरे जीवन में इस ध्यान विज्ञान आश्रम की भूमि का विशेष महत्व है, क्योंकि मैंने यहां ध्यान में रहते हुए अपने जीवन में प्रेम, मैत्री व आनन्द की प्राप्ति की है। इन दस सालों की यात्रा में स्वामी जी से रक्त सम्बन्ध ना होते हुए भी प्रगाढ़ सम्बन्ध स्थापित हो गए इसके लिए में स्वामी जी का आभार प्रकट करता हूँ और धन्यवाद देता हूँ कि उन्ही के कारण उनकी छोटी बहन माँ भावना जी का देवी के रूप में दर्शन पा सके। इस अवसर पर उन्होंने संस्था के वरिष्ठ सदस्य व स्तम्भ रहे स्वर्गीय श्री अमरनाथ जी को याद किया और कहा कि मैं समझता हूं कि अमरनाथ जी यहाँ इसी ध्यान विज्ञान मन्दिर में सभी के बीच मौजूद हैं। उन्होंने कहा कि और बहुत कुछ प्राप्त हुआ जिसे शब्दों में बयान नही किया जा सकता।
इसके बाद श्री जीत सिंह जी ने बताया कि वह संस्था के अस्तित्व में आने के आइडिया के समय से ही जुड़े हैं और स्वामी जी से विशेष रूप में मानसिक स्तर पर गहरे से जुड़े हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय सेना से जुड़े होने के कारण वह आमतौर पर किसी संस्था आदि के कार्यक्रम में अपना व्याख्यान नही देते परन्तु स्वामी जी के आग्रह को मना नहीं कर पाया। भारतीय सेना का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि व्यक्ति समस्याओं के समय में निराश हो जाता है लेकिन फौजी समस्याओं के समय निराशा की बजाए उसका तुरन्त व सही समाधान ढूंढकर उसे हल कर देता है। उसी प्रकार ध्यान द्वारा मानव अपनी समस्याओं को हल करने की शक्ति प्राप्त करता है। उन्होंने बताया कि ये जो ध्यान विज्ञान केंद्र है इसमें जो अथक प्रयास हुए हैं उनसे ज्यादा शायद ही कोई जानता होगा। पिछले दस वर्षों में हमने 800 से ज्यादा ध्यान कार्यक्रमो को आयोजित करते हुए दस हजार से ज्यादा लोगों के बीच पहुंचे हैं। ध्यान द्वारा मानव मनस्थिति में कुछ सकारात्मक परिवर्तन ला कर हम उनके जीवन को सुखद बना सके बस यही प्रयास है। एक में परिवर्तन से परिवार में परिवर्तन फिर समाज में परिवर्तन होता है बस ये प्रयास रुकने नहीं चाहिए। इस परिवर्तन में संस्था द्वारा हमारा भी छोटा सा योगदान है।
कर्नल मान सिंह जी ने कहा कि हम सभी सांसारिक उलझनों व परिवार में उलझ जाते हैं लेकिन मैंने भारतीय सेना में रहते हुए बहुत कुछ देखा है इसलिए इस उलझन से दूर रहा हूँ। उन्होंने बताया कि जब से मैं आश्रम में आया हूँ तब से जो कुछ मैनें चाहा है वही सब मिला है इसका सारा श्रेय स्वामी जी को जाता है। यहां कोई झूठ, फरेब, आडम्बर कुछ भी नही है। उन्होंने कहा कि यह संस्था बड़े प्रयासों से खड़ी हुई है और इस ध्यान केंद्र के अलावा झुण्डपुर, सोनीपत में विशाल आश्रम है जिसमे प्राकृतिक चिकित्सालय स्थापित है जिसका सभी को फायदा लेना चाहिए। उन्होंने मंच से घोषणा करते हुए कहा कि वह जब तक जिएंगे तब तक प्रति वर्ष एक लाख रुपए का योगदान संस्था को देते रहेंगे। उन्होंने सभी साधकों से भी अपने नेक कमाई में से संस्था को सहयोग करने की अपील की।
स्वामी जी की पुत्री शिप्रा आनन्द ने भी स्वामी जी के जन्मदिन पर अपनी शुभकामनाएँ प्रस्तुत की और कहा कि आपका प्रेम जैसे मुझे मिलता है ऐसे ही आप सबको एकसमान रूप में देते हैं। आपसे मुझे सदैव प्यार ही मिला है, मेरे लिए आप भगवान से भी बढ़कर हैं और आप दुनिया के बेहतरीन पिता हैं।
अंतिम वक्ता के रूप में माँ पूनम ने अपने भाव को स्वामी जी की बचपन से लेकर आज तक कि यात्रा को शब्द चित्रों के रूप में प्रस्तुत किया।
उन्होंने बताया कि कैसे स्वामी जी बचपन से विलक्षण गुणों से भरपूर थे। स्वामी जी के विवाह के बाद मिले माँ भावना जी के सकारात्मक सहयोग का नतीजा है कि आज हम उनके सानिध्य में इस संस्था में यहां उपस्थित हैं। माँ पूनम ने 17 मार्च 2007 को स्वामी जी के महानिर्वाण की घटना का भी जिक्र किया।
उन्होंने कहा कि मेरे निजी अनुभव बहुत गहरे हैं। इस संस्था में ध्यान कार्यक्रमों में मैंने भाग लिया इसके बाद मुझमे बाहरी संसार की समस्याओं से लड़ने की आंतरिक शक्ति प्राप्त हुई है। मैं माँ भावना जी के प्रति आभार प्रकट करती हूं कि उन्होंने अपना प्रेमपूर्ण सहयोग मुझे दिया है और मुझे मेरे अस्तित्व जानने की समझ प्रदान की।
इस संस्था से मुझे वो स्थिरता मिली है वो होश व सजगता मिली है कि मैं बड़ी से बड़ी विपत्ति का भी बिना विचलित हुए सामना कर सकती हूं। उन्होंने सबका आह्वान किया की इस संस्था के संस्थापक तो बेशक स्वामी जी व माँ भावना जी हैं लेकिन यह संस्था आपकी अपनी है, हम जैसों की है इसलिए अपना योगदान हमेशा देते रहिए और मैं यह विश्वास दिलाती हूँ कि यहाँ जो मिलता है वह कहीं नहीं मिलता।
अपने भावपूर्ण सम्बोधन के बीच बहुत से वक्ता भावुक भी हो गए। इस बीच श्री सतीश चांदना, श्री जैन जी, श्री सत्यवान जी आदि ने अपने भाव व्यक्त किए तथा स्वामी जी के जन्मदिन व संस्था के दस वर्ष पूर्ण होने पर शुभकामनाएं व्यक्त की।
तदुपरांत स्वामी परम आनन्द मैत्रेय जी ने सभी साधकों के भावपूर्ण सम्बोधन पर आशीर्वाद दिया। उन्होंने यज्ञ चिकित्सा के ऊपर विस्तृत रूप से प्रकाश डाला तथा यज्ञ की महिमा तथा उससे जुड़े वैज्ञानिक तथ्यों को बताया और वेद मंत्रों के उच्चारण के साथ यज्ञ का आयोजन किया गया।
अंतिम में परम आनंद मैत्री जी का जन्मोत्सव मनाया गया मैत्रेय जी जो सन्देश देते हैं कि संसार में रहें प्रेम, मैत्री, आनंद और उत्सव में और जब भी समय व एकांत मिले ध्यान में चले जाएँ इसी सूत्र के साथ सभी ने आशीर्वाद लेते हुए और उत्सव मनाते हुए प्रस्थान किया|
|| ओम आनंदम ||